Thursday, 5 January 2017

एक वर्ष नया फिर आया है....



कुछ नई उम्मीदें जाग उठीं, एक नया जोश भरमाया है,
एक वर्ष और बीता तो क्या, एक वर्ष नया फिर आया है....

कुछ सपनो को पंख मिले, कुछ मगर अधूरे होंगे,
सब पर मेरा विश्वास है ये, इस वर्ष सभी पूरे होंगे..
एक स्वप्न ने अंगडाई ली है, एक ख्वाब फिर से इतराया है,
एक वर्ष और बीता तो क्या, एक वर्ष नया फिर आया है....

इस साल मोहब्बत पनपे और, ख़त्म हर एक वो दूरी हो,
इंसान न हो कोई बेबस, और ना कोई मजबूरी हो..
एक रात थी काली चली गई, दिनमान नया चढ़ आया है,
एक वर्ष और बीता तो क्या, एक वर्ष नया फिर आया है....

इस साल न कोई गम हो और, नित खुशियों में ही व्यस्त रहें,
प्रभु से मेरी विनती है ये, सब सुखी रहें और स्वस्थ रहें..
पुलकित है तन-मन और जीवन, एक हर्ष नया फिर छाया है,
एक वर्ष और बीता तो क्या, एक वर्ष नया फिर आया है....

इस वर्ष नए आयाम छुओ, संघर्ष तुम्हे मंगलमय हो,
अम्बर भर की खुशियों के संग, नव वर्ष तुम्हे मंगलमय हो..
जनवरी है खोले हाथ खड़ी, दिसंबर फिर से बिसराया है,
एक वर्ष और बीता तो क्या, एक वर्ष नया फिर आया है....

Friday, 2 December 2016

शायद आकाश छुआ मैंने....



शायद आकाश छुआ मैंने, सबके अंतर्मन भांप गए,

जो कहते थे खुद को ज्ञानी, सब सिहर उठे सब काँप गए |



जिनमें मेरा यश गान हुआ वो रातें उनको चुभती थीं ,

जिन छोटी-छोटी बातों पर जग जी भर ताली देता है,

हाँ, मेरे द्वारा कही गईं वो बातें उनको चुभती थीं ,

वो महामूर्ख, वो अभिमानी, जो अर्श पे खुद को कहते थे,

अपने कर्मो के कारण ही, वो फर्श पे अपने आप गए |

 शायद आकाश छुआ मैंने, सबके अंतर्मन भांप गए,

जो कहते थे खुद को ज्ञानी, सब सिहर उठे सब काँप गए |



जो मेरे शब्दों को ही, बस सुनते और सुनाते थे,

उनका अपना ही शब्द-बाण, उनके अधरों पर अटक गया ,

थे साथ मेरे, जो मेरे हित में, रास्ता मुझे दिखाते थे,

कुछ आज हुआ ऐसा की उनका, जीवन-रथ पथ भटक गया ,

हर गैर-गैरती हरक़त पर, उनकी अब दुनिया हंसती है,

ये न्याय कहें उस मालिक का, या उनपर एक अभिशाप कहें |

 शायद आकाश छुआ मैंने, सबके अंतर्मन भांप गए,

जो कहते थे खुद को ज्ञानी, सब सिहर उठे सब काँप गए |



अब ज़िक्र पे मेरे आलम ये है, चुप-चाप निकल वो जाते हैं,

मैं केवल आँख मिलाता हूँ, वो उसमे भी कतरातें हैं ,

वाकिफ हैं वो इससे की वो, अब एक टूटा हुआ परिंदा हैं,

कुल कायनात को मालूम है, वो मन ही मन शर्मिंदा हैं ,

चाहते हैं, पर अपने मुह से मेरा नाम नहीं लेते,

ये फल है उनकी गलती का उनका पश्च्याताप कहें |

 शायद आकाश छुआ मैंने, सबके अंतर्मन भांप गए,

जो कहते थे खुद को ज्ञानी, सब सिहर उठे सब काँप गए |



जितना वो कर पाए जैसे, बस मेरा अपमान किया,

व्यर्थ ही था उद्देश्य ये उनका, अंत में सबने मान लिया ,

लेकिन मजबूर हैं आदत से वो, शायद किस्मत के मारे हैं,

और ज़ारी है गर कोशिश अब भी, तो भोले नहीं बेचारे हैं ,

मैं यही कहूँगा उनसे की, हैं बहुत सी चीज़े करने को,

मुझसे टकराकर पहले ही, ढह कितने सैलाब गए |

 शायद आकाश छुआ मैंने, सबके अंतर्मन भांप गए,

जो कहते थे खुद को ज्ञानी, सब सिहर उठे सब काँप गए |


Thursday, 17 November 2016

ख्वाबों से डर….



एक ज़िन्दगी बीत गई है, इस दिल को बहलाने में,
एक ज़माना निकल गया है, सच्चाई झुठलाने में,
दिन तो मेरे साथ में थे जब, जब भी मैं यूँ रोया था,
पर रातें अब भी साथ नहीं हैं, तेरी याद भुलाने में,
उन यादों का मिटना अच्छा, जो यादें बहुत रुलाती हो,
तुम्हे दिन में न भी याद करूँ तो, तुम ख्वाबों में आ जाती हो,
तब दिन की कोशिश पर जैसे पानी, गया बिखर हो लगता है,
तुम ख्वाबों में मत आना मुझको, ख्वाबों से डर लगता है......

तुमने बोला खुश लगते हो, मैंने हसना छोड़ दिया,
याद में तेरी दिल रोये तो, रोना कैसे छोड़ दू मैं?
तुम कह दो तो कसम तुम्हारी, जीना भी मैं छोड़ दू पर,
ख्वाब ना आएं इसकी खातिर, सोना कैसे छोड़ दू मैं?
ख्वाब में तुमको देख लू तो हर, जख्म हरे हो जातें हैं,
फिर जैसे मेरी खुशियों का छिप, गया हो दिनकर लगता है,
तुम ख्वाबों में मत आना मुझको, ख्वाबों से डर लगता है......

या तो मेरे दिल से अपनी, यादें सभी मिटा जाओ,
या ख्वाबों में आना है तो, फिर जीवन में आ जाओ,
हर पल तेरा ज़िक्र करूँ तो, मेरी गलती मत देना,
यादों को लेके साथ मरुँ तो, मेरी गलती मत देना,
ख्वाबों में तुम आती हो तो, हर याद सजग हो जाती हैं,
और पल भर में दिन भर का सारा, मिट गया हो लश्कर लगता है,
तुम ख्वाबों में मत आना मुझको, ख्वाबों से डर लगता है......

Wednesday, 16 November 2016

मैं तो इंसान हूँ….



सारे हिन्दू सुने, मुसलामा भी सुने,
सारे धर्मों के सब, हुक्मरां भी सुने,
सारी धरती सुने, आसमां भी सुने,
सब सियासत के वो, बेहया भी सुने,
मैं तो इंसां के माथे की एक शान हूँ,
ना तो हिन्दू हूँ मैं, ना मुसलमान हूँ,
मैं तो इंसान हूँ, मैं तो इंसान हूँ...

राग धर्मों का मैंने, है गाया नहीं,
और दुश्मन किसी को, बताया नहीं,
ना ही अल्लाह का डर, ना ही भगवान का,
खून अब तक किसी का, बहाया नहीं,
क्यों मैं इंसां से हैवां, बनू बेवजह,
न तो फतवा हूँ मैं, ना ही फरमान हूँ,
मैं तो इंसान हूँ, मैं तो इंसान हूँ...

श्लोक वेदों के मुझको, हैं आते नहीं,
आयातों से भी मेरे, हैं नातें नहीं,
पाठ इंसानियत का, ही पढता हूँ मैं क्युकी,
ये लड़ना किसी को सिखाते नहीं,
ना तो जन्नत का लालच है, ना हूर का,
ना तो गीता हूँ मैं, ना ही कुर-आन हूँ,
मैं तो इंसान हूँ, मैं तो इंसान हूँ...

चाहता हूँ मैं की, बात ये आम हो,
शांति और अमन, जिसका पैगाम हो,
देश है एक चलो, एक धरम भी चुने,
सिर्फ इंसानियत, जिसका एक नाम हो,
ना ही नारंगी, ना सिर्फ सरसब्ज़ हूँ,
मैं तो पूरे तिरंगे की ही शान हूँ,
मैं तो इंसान हूँ, मैं तो इंसान हूँ...

Monday, 31 October 2016

दिवाली और एक अनदेखा सच....



जब निकला था घर से अपने मैं, सब शांत सहज हरियाली थी,
मेरी नज़रों का भ्रम था वो, हर तरफ सिर्फ खुशहाली थी,
ये रात अमावस काली है, वो रात अमावस काली थी,
आज भी एक दिवाली है, उस रात भी एक दिवाली थी|
जब सच को अंतर से जाना, तब मेरा जीवन संभल गया,
गम को खुद आँखों से देखा, खुशियों का मतलब बदल गया,
याद मुझे है, पर पता नहीं, क्यों मन था मेरा अशांत बड़ा,
दिवाली की रंगत लेने को, मैं यूँही घर से निकल पड़ा,
हर तरफ रौशनी, खुशियां थी, हर तरफ शोर धमाकों का,
हर बच्चा अपने में खुश था, लेकर आनंद पटाखों का,
कुछ दूर ही पंहुचा था आगे, एक परछाईं मुझे दिखाई दी,
हिम्मत की थोड़ा पास गया, रोने की आवाज़ सुनाई दी,
पटाखों की बारूदों से, वैसे ही मौसम किसक रहा था,
ऐसे में घुटनों पर सिर रखकर, एक बच्चा बैठा सिसक रहा था,
लाखों प्रश्न उठे दिल में, मन के भवरों ने कूच किया,
कुछ डर भी था, जिज्ञासा भी, मैंने उससे ये पूछ लिया-
ये रात दिवाली की है हर, बच्चा अपने घर होता है,
तू दूर यहाँ अकेले में, क्यों बैठ के ऐसे रोता है?
जैसे उसने मुझको देखा, पहले तो रोना बंद किया,
गले से आवाज़ न आई तो, स्वर थोडा और बुलंद किया,
“बोला, भैया! हाँ, शोर भी है, और रात बड़ी ही काली है,
पर मेरी नज़रों से देखो, क्या सच-मुच आज दिवाली है?
आप के लिए खास होगी पर, मेरी तो वही पुरानी है,
जो हर रात कहानी होती है, मेरी आज भी वही कहानी है,
घर में मेरी भूखी मां हैं, दो बहने, दोनों छोटी हैं,
ना कल ही रोटी थी घर में, ना आज ही घर में रोटी है,
जब तन पे कपड़े होते हैं, तो खुश हर बच्चा लगता है,
और पेट भरा हो खाने से, तो हसना भी अच्छा लगता है,
आप के लिए तो आज जैसी बस, एक अमावस काली होती है,
पर हमको जब रोटी मिल जाये, वो हर रात दिवाली होती है,
तो मेरी अब चिंता छोड़ो, जाओ अपने घर को जाओ,
आप की आज दिवाली है तो, मजे करो और सो जाओ|”
उस रात रोशनी में भी मैंने महसूस किये, कुछ अन्धकार के साए थे,
उसकी आँखों के आंसू अब, मेरी आँखों से आए थे,
क्या हमने अपनी खुशियों को बस, अपने घर से ही जोड़ लिया है,
और उसी ख़ुशी में अंधे होकर, देश को पीछे छोड़ दिया है,
जब हम खुश होते हैं त्योहारों पर, और ढेरो पकवान बनाते हैं,
सोचो! उस वक़्त कहीं सड़को पर कितने, बच्चे भूखे मर जाते हैं,
नहीं किया है अब तक तो आओ, इस दिवाली नीव धरें,
कुछ देश के बारे में भी सोचे, आओ मिलकर संकल्प करें,
अपने घर की खुशियों को, हम उन तक भी पहुचाएंगे,
कहीं भी होंगे, कैसे भी, अपना ये देश बनाएँगे,
बस मैं भी तब तक राह तकूंगा, जब तक ना भारत की जय हो,
इस बार भी आपकी “शुभ दिवाली”, आपको ही मंगलमय हो|


Saturday, 15 October 2016

वक़्त, याद और उम्मीद…



धूमिल होती इन यादों को, एक सहारा मिल जाये,
एहसान तुम्हारा हो जाये, गर प्यार तुम्हारा मिल जाये...
टूट रही है याद तुम्हारी,बीते जाते इन लम्हों संग,
मेरा दिल फिर जन्म ले रहा, तेरे दिए गए जख्मों संग,
जो तुमने मुझे गुलाब दिए थे, तब रस्ते पर चलते-चलते,
उम्मीद छोड़ सब सूख गए हैं, राह तुम्हारी तकते-तकते,
उन्ही गुलाबों संग बैठा हूँ, शायद कुछ ऐसा हो जिससे,
इनमे फिर से जान आ जाये, ये दोबारा खिल जाएँ,
धूमिल होती इन यादों को, एक सहारा मिल जाये,
एहसान तुम्हारा हो जाये, गर प्यार तुम्हारा मिल जाये...

नदी किनारे जो हमसे मिलने आती थी,
सात रंग वाली वो मछली अंधियारे में,
देखती है जब आज अकेले में मुझको तो,
पूछती है कुछ प्रश्न तुम्हारे बारे में,
उन प्रश्नों को सुनने भर से, मेरा अंतस हिल जाता है,
दो आंसूं पलकों पर आते हैं, और उसको उत्तर मिल जाता है,
आज उसी नदी किनारे, उस मछली के संग बैठा हूँ,
शायद कुछ ऐसा हो जिससे, सारा पानी ऐसे उछले,
दोनों साहिल तक हिल जाएँ,
धूमिल होती इन यादों को, एक सहारा मिल जाये,
एहसान तुम्हारा हो जाये, गर प्यार तुम्हारा मिल जाये...

तड़प रही हैं आँखें मेरी, दीदार तुम्हारा करने को,
तुम क्या जानो कैसे मैंने, उनको समझाया है अब तक,
मेरा दिल बेचैन है रहता, साथ तुम्हारे रहने को,
सच मनो, उसको मैंने, सच नहीं बतलाया है अब तक,
पर उसकी भी गलती ही क्या है, वो इतना ही तो कहता है,
उस मन को अपने पास बुला लूँ, जो अब भी पास तुम्हारे रहता है,
उस दिल के संग में ही बैठा हूँ, शायद कुछ ऐसा हो जिससे,
या तो मन वापस आ जाये या पास तुम्हारे,
चला फिर से ये दिल जाये,
धूमिल होती इन यादों को, एक सहारा मिल जाये,
एहसान तुम्हारा हो जाये, गर प्यार तुम्हारा मिल जाये...


Thursday, 13 October 2016

वो कहती थी लिखते रहना…..



इस दुनिया की दीवारों में, सच के इन अमर बाज़ारों में,
बेमोल यूँही बिकते रहना, वो कहती थी लिखते रहना….
है अब भी याद मुझे वो पल, वो बोली थी एक बात कहूँ,
है कसम तुम्हे ये मेरी कि, मैं रहूँ साथ या नहीं रहूँ,
सच का दामन थामे रहना, आशाओं में दिखते रहना,
वो कहती थी लिखते रहना, वो बोली थी लिखते रहना…

तुम सागर की उंचाई लिखना, तुम पर्वत की गहराई लिखना,
दिन की धूप सभी लिखते हैं, तुम रातों की परछाईं लिखना,
झूठ प्रबल हो सच्चाई पर जब-जब भी,
सच की खातिर मिट जाना या मिटते रहना,
वो कहती थी लिखते रहना, वो बोली थी लिखते रहना…

जब अबला खोये सड़को पर, तुम तब लिखना,
जब कोई सोये सडको पर, तुम तब लिखना,
उम्मीद लिए एक रोटी की भूखा बच्चा,
जब भी रोये सड़कों पर, तुम तब लिखना,
बेचैनी हावी हो जब तब खुशियों खातिर,
बिक जाना या हर बार यूँही बिकते रहना,
वो कहती थी लिखते रहना, वो बोली थी लिखते रहना…

तो हाथ जोड़कर मांग रहा हूँ माफ़ी मैं,
मिट्टी की खातिर, लिखना बहुत जरुरी है,
ना ठीक लगे हो शब्द मेरे तो ये पढना,
वो थी मेरी उम्मीद, मेरी मजबूरी है,
हाँ! कुछ लोगों को अफ़सोस भी होगा,और कुछ को मेरी बात खलेगी,
पर जब तक मेरी सांस चलेगी,तब तक उसकी कसम चलेगी,
और जब तक उसकी कसम चलेगी,तब तक मेरी कलम चलेगी..….

Wednesday, 5 October 2016

तुम्हारी आँखें….



तुम चाहो चाहे न चाहो, क्यों न चाहे तुम लाख छिपाओ,
कुछ अनकहे से राज़ तुम्हारे, बरबस ही वो खोल देती थी,
तुम्हारी आँखें बोल देती थी…

जब-जब प्यार के रिश्ते को, किया तुमने शर्मिंदा,
जब-जब भी झूठे बोल, तुम्हारे अधरों ने बोले,
तुम्हारी आँखों ने रख ली लाज, तुम्हारी भी और मेरी भी,
दे दिए अश्रु-से मोती, पलों में सारे सच खोले,
तुम्हारी हर गलत सी बात, तुम्हारे झूठ की औकात,
खुद झुक जाती थी और झट से तोल देती थी,
तुम्हारी आँखें बोल देती थी….

तुम्हारे बंद से होंठो ने जब, मेरे विश्वास को तोड़ा,
चीख-चीख कर रोया, मेरे दिल का हर कतरा,
तब मेरे मन के भवरों को, तुम्हारी आँखों ने समझा,
हर बार खुद से ही, पलों में भांप कर खतरा,
कभी ना साथ छोड़ने की कभी, रिश्ता ना तोड़ने की,
एक अटूट-सी कसम, मुझे अनमोल देती थी,
तुम्हारी आँखें बोल देती थी….

तुम्हारे विश्वासघातों पर, कर दूँ प्यार अपना ये न्योछावर,
इसी ख्याल में पलकें, कभी भीगीं कभी सूखीं,
मगर डरता था मेरा दिल, तुम्हारे एक आंसू से,
बहुत एहसान थे मुझपर, तुम्हारी आँखों के क्यूंकि,
कभी पलकों को झुकाकर, कभी इशारों से समझाकर,
विश्वासघात सहने का मुझे वो मोल देती थी,
तुम्हारी आँखें बोल देती थी….

Monday, 3 October 2016

परिभाषा-ए-मोहब्बत….



ये प्रेम एक ऐसा बंधन है, जिसमे बंधन है एक नहीं,
रिश्ते हैं लाखों दुनिया में पर, इससे बढ़कर है एक नहीं,
ये प्रेम असल में जीवन है, ये प्रेम बरसता सावन है,
धड़के दो अलग-अलग दिल में, ये प्यार अनोखी धड़कन है,
हर पायल की झंकार है ये, माँ वीणा का सितार है ये,
संसार से है ये प्यार नहीं, ये प्यार है तब संसार है ये,
खुद भगवान् की पूजा है, नमाज़ और अरदास है ये,
खुद धर्म नहीं इसका लेकिन, सारे धर्मो से खास है ये,
तो दिल खोल इसे सुनना वो सब, जिनकी बाकि फरियादे हों,
जिनकी दो आँखें अपनी हों, या जिनकी बीती यादें हों,
ये प्रेम रहे जिनके संग वो, हमसफ़र यहाँ हो जाते हैं,
और जो रहते हैं इसके संग, वो अमर यहाँ हो जातें हैं…

Saturday, 1 October 2016

माफ़ मुझे तुम कर देना….



माफ़ मुझे तुम कर देना, गर गलती हो मेरी लगी कभी,
इल्ज़ाम तुम्हारे सारे ही, स्वीकार मुझे हैं यहीं अभी |
तुमसे बढ़कर हो मिली मुझे, ऐसी सौगात नहीं रखता,
पर माना मेरी गलती है, मैं दिल में बात नहीं रखता,
मन सबको एक बराबर दूँ, ऐसे जज़्बात नहीं रखता,
कुछ खास दोस्तों से ऊपर, सबकी औकात नहीं रखता |
गर ये सब मेरी गलती हैं, तो दिल से हैं स्वीकार सभी,
माफ़ मुझे तुम कर देना, गर गलती हो मेरी लगी कभी,
इल्ज़ाम तुम्हारे सारे ही, स्वीकार मुझे हैं यहीं अभी |
होती है तुम्हारी ख़ुशी कभी, अंतस से खुश मैं होता हूँ,
गर आंसूं गिरे तुम्हारा तो, मैं मन ही मन में रोता हूँ,
 शायद दिन के उजियाले में, मैं साथ नहीं रह सकूँ कभी,
पर नींद तुम्हे जब आती है, मैं तभी चैन से सोता हूँ |
भावों को नहीं दिखाता मैं, यूँ बीच भरे बाज़ार कभी,
पर गर ये सब मेरी गलती है, तो दिल हैं स्वीकार सभी,
माफ़ मुझे तुम कर देना, गर गलती हो मेरी लगी कभी,
इल्ज़ाम तुम्हारे सारे ही, स्वीकार मुझे हैं यहीं अभी |
हैं ऐसे मुझको दोस्त मिले, कुछ गैरों को खल जाते हैं,
मैं एक दिन भी खुश रह लूं, उनके हफ्ते जल जाते हैं |
पर ध्यान नहीं हूँ देता मैं, हैं और भी बाकी काम मुझे,
और उनका लक्ष्य एक ही है, बस करना है बदनाम मुझे |
हिम्मत पे मेरी गर शक हो, तो जल्दी तुम्हे पता दूंगा,
और अपनी औकात जाननी हो, जब कहना तभी बता दूंगा |
कुछ तत्व अराजक ऐसे हैं, लिखना पड़ता है मुझे तभी,
पर लिखना मेरी गलती है, तो दिल से है स्वीकार अभी,
माफ़ मुझे तुम कर देना, गर गलती हो मेरी लगी कभी,
इल्ज़ाम तुम्हारे सारे ही, स्वीकार मुझे हैं यहीं अभी |