Monday, 31 October 2016

दिवाली और एक अनदेखा सच....



जब निकला था घर से अपने मैं, सब शांत सहज हरियाली थी,
मेरी नज़रों का भ्रम था वो, हर तरफ सिर्फ खुशहाली थी,
ये रात अमावस काली है, वो रात अमावस काली थी,
आज भी एक दिवाली है, उस रात भी एक दिवाली थी|
जब सच को अंतर से जाना, तब मेरा जीवन संभल गया,
गम को खुद आँखों से देखा, खुशियों का मतलब बदल गया,
याद मुझे है, पर पता नहीं, क्यों मन था मेरा अशांत बड़ा,
दिवाली की रंगत लेने को, मैं यूँही घर से निकल पड़ा,
हर तरफ रौशनी, खुशियां थी, हर तरफ शोर धमाकों का,
हर बच्चा अपने में खुश था, लेकर आनंद पटाखों का,
कुछ दूर ही पंहुचा था आगे, एक परछाईं मुझे दिखाई दी,
हिम्मत की थोड़ा पास गया, रोने की आवाज़ सुनाई दी,
पटाखों की बारूदों से, वैसे ही मौसम किसक रहा था,
ऐसे में घुटनों पर सिर रखकर, एक बच्चा बैठा सिसक रहा था,
लाखों प्रश्न उठे दिल में, मन के भवरों ने कूच किया,
कुछ डर भी था, जिज्ञासा भी, मैंने उससे ये पूछ लिया-
ये रात दिवाली की है हर, बच्चा अपने घर होता है,
तू दूर यहाँ अकेले में, क्यों बैठ के ऐसे रोता है?
जैसे उसने मुझको देखा, पहले तो रोना बंद किया,
गले से आवाज़ न आई तो, स्वर थोडा और बुलंद किया,
“बोला, भैया! हाँ, शोर भी है, और रात बड़ी ही काली है,
पर मेरी नज़रों से देखो, क्या सच-मुच आज दिवाली है?
आप के लिए खास होगी पर, मेरी तो वही पुरानी है,
जो हर रात कहानी होती है, मेरी आज भी वही कहानी है,
घर में मेरी भूखी मां हैं, दो बहने, दोनों छोटी हैं,
ना कल ही रोटी थी घर में, ना आज ही घर में रोटी है,
जब तन पे कपड़े होते हैं, तो खुश हर बच्चा लगता है,
और पेट भरा हो खाने से, तो हसना भी अच्छा लगता है,
आप के लिए तो आज जैसी बस, एक अमावस काली होती है,
पर हमको जब रोटी मिल जाये, वो हर रात दिवाली होती है,
तो मेरी अब चिंता छोड़ो, जाओ अपने घर को जाओ,
आप की आज दिवाली है तो, मजे करो और सो जाओ|”
उस रात रोशनी में भी मैंने महसूस किये, कुछ अन्धकार के साए थे,
उसकी आँखों के आंसू अब, मेरी आँखों से आए थे,
क्या हमने अपनी खुशियों को बस, अपने घर से ही जोड़ लिया है,
और उसी ख़ुशी में अंधे होकर, देश को पीछे छोड़ दिया है,
जब हम खुश होते हैं त्योहारों पर, और ढेरो पकवान बनाते हैं,
सोचो! उस वक़्त कहीं सड़को पर कितने, बच्चे भूखे मर जाते हैं,
नहीं किया है अब तक तो आओ, इस दिवाली नीव धरें,
कुछ देश के बारे में भी सोचे, आओ मिलकर संकल्प करें,
अपने घर की खुशियों को, हम उन तक भी पहुचाएंगे,
कहीं भी होंगे, कैसे भी, अपना ये देश बनाएँगे,
बस मैं भी तब तक राह तकूंगा, जब तक ना भारत की जय हो,
इस बार भी आपकी “शुभ दिवाली”, आपको ही मंगलमय हो|


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