Wednesday, 16 November 2016

मैं तो इंसान हूँ….



सारे हिन्दू सुने, मुसलामा भी सुने,
सारे धर्मों के सब, हुक्मरां भी सुने,
सारी धरती सुने, आसमां भी सुने,
सब सियासत के वो, बेहया भी सुने,
मैं तो इंसां के माथे की एक शान हूँ,
ना तो हिन्दू हूँ मैं, ना मुसलमान हूँ,
मैं तो इंसान हूँ, मैं तो इंसान हूँ...

राग धर्मों का मैंने, है गाया नहीं,
और दुश्मन किसी को, बताया नहीं,
ना ही अल्लाह का डर, ना ही भगवान का,
खून अब तक किसी का, बहाया नहीं,
क्यों मैं इंसां से हैवां, बनू बेवजह,
न तो फतवा हूँ मैं, ना ही फरमान हूँ,
मैं तो इंसान हूँ, मैं तो इंसान हूँ...

श्लोक वेदों के मुझको, हैं आते नहीं,
आयातों से भी मेरे, हैं नातें नहीं,
पाठ इंसानियत का, ही पढता हूँ मैं क्युकी,
ये लड़ना किसी को सिखाते नहीं,
ना तो जन्नत का लालच है, ना हूर का,
ना तो गीता हूँ मैं, ना ही कुर-आन हूँ,
मैं तो इंसान हूँ, मैं तो इंसान हूँ...

चाहता हूँ मैं की, बात ये आम हो,
शांति और अमन, जिसका पैगाम हो,
देश है एक चलो, एक धरम भी चुने,
सिर्फ इंसानियत, जिसका एक नाम हो,
ना ही नारंगी, ना सिर्फ सरसब्ज़ हूँ,
मैं तो पूरे तिरंगे की ही शान हूँ,
मैं तो इंसान हूँ, मैं तो इंसान हूँ...

No comments:

Post a Comment