Thursday, 17 November 2016

ख्वाबों से डर….



एक ज़िन्दगी बीत गई है, इस दिल को बहलाने में,
एक ज़माना निकल गया है, सच्चाई झुठलाने में,
दिन तो मेरे साथ में थे जब, जब भी मैं यूँ रोया था,
पर रातें अब भी साथ नहीं हैं, तेरी याद भुलाने में,
उन यादों का मिटना अच्छा, जो यादें बहुत रुलाती हो,
तुम्हे दिन में न भी याद करूँ तो, तुम ख्वाबों में आ जाती हो,
तब दिन की कोशिश पर जैसे पानी, गया बिखर हो लगता है,
तुम ख्वाबों में मत आना मुझको, ख्वाबों से डर लगता है......

तुमने बोला खुश लगते हो, मैंने हसना छोड़ दिया,
याद में तेरी दिल रोये तो, रोना कैसे छोड़ दू मैं?
तुम कह दो तो कसम तुम्हारी, जीना भी मैं छोड़ दू पर,
ख्वाब ना आएं इसकी खातिर, सोना कैसे छोड़ दू मैं?
ख्वाब में तुमको देख लू तो हर, जख्म हरे हो जातें हैं,
फिर जैसे मेरी खुशियों का छिप, गया हो दिनकर लगता है,
तुम ख्वाबों में मत आना मुझको, ख्वाबों से डर लगता है......

या तो मेरे दिल से अपनी, यादें सभी मिटा जाओ,
या ख्वाबों में आना है तो, फिर जीवन में आ जाओ,
हर पल तेरा ज़िक्र करूँ तो, मेरी गलती मत देना,
यादों को लेके साथ मरुँ तो, मेरी गलती मत देना,
ख्वाबों में तुम आती हो तो, हर याद सजग हो जाती हैं,
और पल भर में दिन भर का सारा, मिट गया हो लश्कर लगता है,
तुम ख्वाबों में मत आना मुझको, ख्वाबों से डर लगता है......

No comments:

Post a Comment