Saturday, 1 October 2016

माफ़ मुझे तुम कर देना….



माफ़ मुझे तुम कर देना, गर गलती हो मेरी लगी कभी,
इल्ज़ाम तुम्हारे सारे ही, स्वीकार मुझे हैं यहीं अभी |
तुमसे बढ़कर हो मिली मुझे, ऐसी सौगात नहीं रखता,
पर माना मेरी गलती है, मैं दिल में बात नहीं रखता,
मन सबको एक बराबर दूँ, ऐसे जज़्बात नहीं रखता,
कुछ खास दोस्तों से ऊपर, सबकी औकात नहीं रखता |
गर ये सब मेरी गलती हैं, तो दिल से हैं स्वीकार सभी,
माफ़ मुझे तुम कर देना, गर गलती हो मेरी लगी कभी,
इल्ज़ाम तुम्हारे सारे ही, स्वीकार मुझे हैं यहीं अभी |
होती है तुम्हारी ख़ुशी कभी, अंतस से खुश मैं होता हूँ,
गर आंसूं गिरे तुम्हारा तो, मैं मन ही मन में रोता हूँ,
 शायद दिन के उजियाले में, मैं साथ नहीं रह सकूँ कभी,
पर नींद तुम्हे जब आती है, मैं तभी चैन से सोता हूँ |
भावों को नहीं दिखाता मैं, यूँ बीच भरे बाज़ार कभी,
पर गर ये सब मेरी गलती है, तो दिल हैं स्वीकार सभी,
माफ़ मुझे तुम कर देना, गर गलती हो मेरी लगी कभी,
इल्ज़ाम तुम्हारे सारे ही, स्वीकार मुझे हैं यहीं अभी |
हैं ऐसे मुझको दोस्त मिले, कुछ गैरों को खल जाते हैं,
मैं एक दिन भी खुश रह लूं, उनके हफ्ते जल जाते हैं |
पर ध्यान नहीं हूँ देता मैं, हैं और भी बाकी काम मुझे,
और उनका लक्ष्य एक ही है, बस करना है बदनाम मुझे |
हिम्मत पे मेरी गर शक हो, तो जल्दी तुम्हे पता दूंगा,
और अपनी औकात जाननी हो, जब कहना तभी बता दूंगा |
कुछ तत्व अराजक ऐसे हैं, लिखना पड़ता है मुझे तभी,
पर लिखना मेरी गलती है, तो दिल से है स्वीकार अभी,
माफ़ मुझे तुम कर देना, गर गलती हो मेरी लगी कभी,
इल्ज़ाम तुम्हारे सारे ही, स्वीकार मुझे हैं यहीं अभी |

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