Saturday, 24 September 2016

देश- एक उपवन…


ये सरकार निकम्मी है तो, हमें सवाली बनना होगा,
बागीचे सा देश है अपना, इसका माली बनना होगा,
कर्तव्यों से सीचेंगे जब, तब जाके अधिकार मिलेगा,
जैसे उपवन में फूल है खिलाता, वैसे अपना देश खिलेगा,
जैसे फूल महकता वैसे, देश का हर ज़र्रा महकेगा,
चहके जैसे पंछी वन में, देश में हर बच्चा चहकेगा,
फिर सब कुछ होगा नया-नया, तब इतना अंतर आएगा,
फूल भले फिर मुरझाए, ये देश नहीं मुरझाएगा,
देश है ये सोने की चिड़िया, सबको फिर विश्वास छुएगा,
रंग फूल के छूटे दिल को, तिरंगा आकाश छुएगा……

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